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8 प्वाइंट में समझिए विशेष राज्य का A2Z

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पिछले दो लोकसभा चुनावों की तरह 2024 चुनाव से पहले बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग सिर उठाने लगा है। बिहार में जातीय गणना की रिपोर्ट जारी होने और इसके आधार पर आरक्षण का दायरा बढ़ाने के बाद अब सीएम नीतीश कुमार इस मुद्दे पर केंद्र की मोदी सरकार को घेरने की तैयारी में हैं। उन्होंने ऐलान किया है कि विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिला तो राज्य भर में आंदोलन करेंगे।  ऐसे में सवाल है कि विशेष राज्य का दर्जा होता क्या है? इसके मिल जाने से क्या लाभ मिलेगा? क्या बिहार को ये दर्जा मिल पाना संभव है या ये बस एक चुनावी मुद्दा भर है। 8 पॉइंट में समझिए विशेष राज्य का दर्जा से जुड़े हर सवाल के जवाब... 1. विशेष राज्य का दर्जा क्या है और कैसे मिलता है ? बिहार लोक वित्त और नीति संस्था के एसोसिएट प्रोफेसर और अर्थशास्त्री सुधांशु कुमार बताते हैं कि संविधान में विशेष राज्य का दर्जा देने का प्रावधान नहीं है। इसकी शुरुआत 5वें केंद्रीय वित्त आयोग की अनुशंसा से हुई । इनमें वे राज्य थे, जो अन्य राज्यों की तुलना में भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक संसाधनों के लिहाज से पिछड़े थे। नेशनल डेवलपमेंट काउंसिल ने पहाड़, दुर्

भीम संसद या भीड़ तंत्र

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पटना के वेटनरी कॉलेज ग्राउंड में जेडीयू की तरफ से संविधान दिवस के दिन भीम संसद का आयोजन किया गया। कार्यक्रम ऐतिहासिक रहा। भीड़ अप्रत्याशित रूप से जुटी। वेटनरी कॉलेज में आज तक इस तरह की भीड़ जमा नहीं हुई थी। ये बात सीएम नीतीश कुमार भी मान लिए। कार्यक्रम को बेल डेकॉर किया गया था ये बात उस रास्ते से गुजरने वाला हर राहगीर के जुवां पर थी ।  ये इस कार्यक्रम के कर्ता-धर्ता मंत्री अशोक चौधरी की बड़ी कामयाबी रही। किसी कार्यक्रम को सफल बनाना खास कर जातीय रैली जैसे कार्यक्रम को, एक चुनौती तो होती है। वो भी तब जब इस कार्यक्रम से ठीक एक दिन पहले भाजपा को मुंह की खानी पड़ी थी। जब झलकारी बाई के कार्यक्रम में उनके आशातीत भीड़ नहीं जुट पाई थी। इसके लिए सीएम ने मंच से अशोक चौधरी की वाहवाही भी की।   ये वो बातें रही जो बाहर से दिखी या दिखाई गई। बकौल अशोक चौधरी इस भीड़ में केवल दलित  शामिल नहीं हुए थे। इसमें दलित का भला सोचने वाले ईबीसी, ओबसी और मुस्लिम समुदाय के लोग भी जुटे थे। इनसे बात करने के बाद ये मालूम हुआ कि वेटनरी कॉलेज ग्राउंड से लेकर एयरपोर्ट की सड़कों पर खचाखच भरी भीड़ में बड़ी आबादी सरकारी कर्मियों की थ

सख्त निर्णय लेने वाले अपने नेता को हमने लाचार देखा

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बिहार विधानसभा अब मेरे लिए नया नहीं रह गया था। सदन के पहले तल्ले पर बना पत्रकार दीर्घा।  कैंपस की मखमली हरी घास से सीढ़ीयों की रेड कार्पेट तक की रेस। पोर्टिको के आगे लगते नारे, प्रदर्शन और बयानबाजी। अब सबकुछ सेट हो गया था। कब किस पार्टी के नेता कैंपस में एंट्री करेंगे। कहां किनका प्रदर्शन होगा। किस पार्टी का प्रदर्शन कितनी देर चलेगा। इन सब की समझ एकदम क्लियर है? सप्तदश (17वीं) विधानसभा का 10वां सत्र था, जब बतौर पत्रकार सदन की कार्यवाही कवर करने इस ऐतिहासिक इमारत में मेरा आना हुआ था। बदलाव बस इतना भर था कि इस बार सारा निर्णय खुद लेना था। हां कंधे पर प्रवीण सर (मेरे संपादक जी) का हाथ जरूर था, लेकिन सत्र की किस एक्टिविटी को कितना तवज्जो देना है ये निर्णय लेने की जवाबदेही सर ने मुझे दे दी थी।   5 दिवसीय शीतकालीन सत्र में बिहार के परिप्रेक्ष्य से ऐतिहासिक निर्णय लिए जाएंगे, इसकी सूचना सत्र की घोषणा से पहले ही सूचनाओं के संसार में तैरने लगे थे। देश के इतिहास में पहली मर्तबा किसी सदन में जातीय और आर्थिक गणना की रिपोर्ट पेश होगी इसकी ताकीद तो हमारे वजीर-ए-आला ने महीनों पहले ही कर दी थी।  7 नवंब

ये आधुनिक बिहार के स्कूल हैं; जहां भविष्य संवर रहे

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घुप्प अंधेरा कमरा, टूटे बेंच...कमरे के पिछले हिस्से में रखा सड़ा गद्दा... टूटे टेबल के साथ धूल फांकते कबाड़ के समान... पहली नजर में लगा किसी कबाड़ रूम में आ गया हूं। धूल से खुद को संभाल पाता कि सहसा बच्चों की शोर ने बताया मैं क्लास रूम में हूं। बच्चों ने बताया इसी कमरे में तीसरी और चौथी कक्षा के बच्चों की पढ़ाई होती है।  ये किसी कबाड़ रूम का नहीं पटना के एक क्लास रूम की तस्वीर है। इन्हीं के बीच तीसरी और चौथी कक्षा की क्लास संचालित होती है।  यहां बच्चे अपने शिक्षक की राह देख रहे थे। जो अगले एक महीने तक उन्हें पढ़ाने की जगह जाति गिनने में व्यस्त रहेंगे।हम जाति आधारित गणना की घोषणा के बाद स्कूलों में पढ़ाई की स्थिति जानने गए थे। आधुनिक बिहार के निर्माता के काल में राजधानी के स्कूलों की ये स्थिति मिलेगी इसका अंदाजा नहीं था।   ग्रामीण इलाकों वाले जिलों से गाहे-बगाहे स्कूल के डूब जाने, बिना रास्ते वाले स्कूल और पेड़ के नीचे चलने वाले स्कूल की सूचना आते रहती है लेकिन इस रिपोर्ट को तैयार करते हुए कई हैरान कर देने वाली जानकारी मिली।   बच्चे शिक्षक की राह देख रहे हैं लेकिन वे अगले एक महीने तक यहां नहीं

झारखंड में बीजेपी को रीचार्ज कर पाएगी ये लाठी!

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रांची में आज खूब लाठियां भांजी गईं।आंसू गैस के गोले दागे गए। नेता-कार्यकर्ता दौड़ाए गए। लोग भींगा-भीगा कर पीटे गए। जवाब में पुलिस वालों पर पत्थर और बोतलें फेंकीं गईं। ये सब हो रहा था राज्य के राजपथ पर। मौका था बीजेपी के सचिवालय घेराव रैली की। प्रथम दृष्ट्या रैली का हासिल रहा कराहते नेता, कार्यकर्ता, पुलिस और पत्रकार।  ये सब अचानक हो गया है। ऐसा बिलकुल नहीं है। आंदोलन के अगुआ और बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने इस स्थिति की आशंका एक दिन पहले ही जता दी थी। यानी मामला बिगड़ने का ग्राउंड एक दिन पहले ही तय हो गया था। सबको पता था इस रैली में खाली बीजेपी के सांसद और विधायक नहीं रहेंगे। इसमें रघुवर दास और बाबू लाल मरांडी जैसे वे दिग्गज चेहरे भी शामिल होंगे जिनके पास सरकार चलाने के भरपूर अनुभव हैं।   विपक्ष हावी जाए सरकारें कहां इसे आसानी से स्वीकार कर पाती है। मामले को बड़ा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ा गया। पहले भाजपा की ओर से आयोजित रैली स्थल में धारा 144 लगाया गया। इसके बाद रैली के दिन ही राज्य भर में गहन वाहन चेकिंग अभियान चलाया गया। रैली स्थल पर हजारों की संख्या में पुलिस बल की तैनाती

राहुल गांधी इतना भर से खुश हो लिए कि उन्होंने पत्रकार की हवा निकाल दी

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राहुल गांधी पहली बार बकौल पूर्व सांसद शुक्रवार को मीडिया से रू-ब-रू हुए। कांग्रेस मुख्यालय में उन्होंने कहा-वे डरेंगे नहीं। लड़ेंगे। इस दौरान राहुल गांधी ने एक बड़ा मुद्दा उठाया। पीएम से सवाल पूछा- शेल कंपनियों द्वारा अडानी समूह में लगाए गए 20 हजार करोड़ रुपए कहां से आए?   इसके बाद की लगभग सारी बातों को उन्होंने बस दोहराया भर। जिसका सार बस इतना सा है कि मोदी और अडानी का रिश्ता क्या कहलाता है?  राहुल गांधी को डिस्क्वालिफाई किए जाने के बाद इस बात की चर्चा तेज है कि इससे राहुल मजबूत होंगे। बकौल सियासी पंडित उनका डिस्क्वालिफिकेशन उन्हें ताकतवर बनाएगा। विपक्षी पार्टियां एकजुट होंगी। ये कांग्रेस के लिए एक अवसर है।   लेकिन कैसे?  प्रेस कांफ्रेंस में राहुल गांधी से पूछा गया कि विपक्षी पार्टियों ने आपके डिस्क्वालिफिकेशन पर आपका साथ दिया है, इस पर आप क्या कहेंगे? राहुल गांधी ने इस सवाल को बस एक लाइन में समेट दिया। केवल शुक्रिया भर कह के। इसके बाद उन्होंने बस इतना  कहा कि हम एक साथ लड़ेंगे। जबकि ये बड़ा मुद्दा है। कांग्रेस लगातार इस मसले पर अपना विचार स्पष्ट करने से बच रही है। इस मुद्दे पर कांक्रेस की

क्या बीजेपी के खिलाफ मुहिम में अकेले पड़े नीतीश कुमार

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बिहार में एनडीए से अलग होने के बाद सितंबर में नीतीश कुमार ने एक बाद एक 10 से ज्यादा पार्टी सुप्रीमो के साथ देशभर में बीजेपी के खिलाफ मोर्चा बनाने की मुहिम शुरू की। 10 से ज्यादा पार्टियों के सुप्रीमों के साथ इस पर मंत्रणा भी की। एंटी बीजेपी धड़ों को एकजुट करने की कोशिश की, लेकिन जिस गुट को एकजुट करने में नीतीश कुमार जुटे थे 6 महीने के भीतर अब वे उस मुहिम में अकेले पड़ते  दिख रहे हैं।  कितने अकेले हो गए हैं उसे इसी से समझ लीजिए कि बीते बुधवार को हैदराबाद में विपक्षी दलों के नेताओं का महाजुटान हुआ। केजरीवाल से लेकर भगवंत मान तक पहुंचे। अखिलेश यादव भी पहुंचे। ममता दीदी को भी निमंत्रम मिला।  लेकिन उसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को निमंत्रण तक नहीं मिला। 18 जनवरी को टीआरएस की हैदराबाद में रैली थी। इसमें अरविंद केजरीवाल, मुलायम सिंह यादव, पी विजयन, डी राजा समेत विपक्ष के सभी बड़े चेहरे शामिल हुए थे।   वरिष्ठ पत्रकार और पॉलिटिकल एना अरविंद मोहन कहते हैं कि शुरुआती तेजी के बाद नीतीश कुमार अब अपने इस अभियान में शिथिल पड़ गए हैं। उनके सामने सिर मुंडवाते ही ओले पड़ने की स्थिति बन गई है। पहले तो उन्हें र